Bihar News: गंगा किनारे जल अर्पण और निर्जला तपस्या जानिए क्यों छठ व्रत को कहा जाता है सबसे कठिन तप

Bihar News: चैती छठ का पावन पर्व शुक्रवार को उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ। बिहार के पटना में 41 गंगा घाटों और 7 तालाबों पर श्रद्धालुओं ने भगवान सूर्य को जल अर्पित किया।

Apr 4, 2025 - 11:52
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Bihar News: गंगा किनारे जल अर्पण और निर्जला तपस्या जानिए क्यों छठ व्रत को कहा जाता है सबसे कठिन तप

Bihar News: चैती छठ का पावन पर्व शुक्रवार को उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ। बिहार के पटना में 41 गंगा घाटों और 7 तालाबों पर श्रद्धालुओं ने भगवान सूर्य को जल अर्पित किया। 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत पूरा कर व्रतियों ने अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। यह पर्व न केवल बिहार बल्कि झारखंड उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।

व्रतियों को करना पड़ा कठिनाई का सामना

दिल्ली-एनसीआर में रहने वाली बिहार की महिलाओं को यमुना नदी के गंदे पानी की वजह से परेशानी उठानी पड़ी। नोएडा और दिल्ली में व्रत रखने वाली महिलाओं को कीचड़ और बदबूदार पानी से गुजरते हुए भगवान सूर्य को जल चढ़ाना पड़ा। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था अटूट रही और उन्होंने पूरी श्रद्धा के साथ पूजा संपन्न की।

चार दिवसीय छठ महापर्व की परंपरा

इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है जिसमें व्रती पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन खरना में गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखा जाता है। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है और अंतिम दिन उषा अर्घ्य के साथ व्रत संपन्न होता है। यह प्रकृति जल और सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है।

सबसे कठिन उपवास में से एक

छठ महापर्व का व्रत सबसे कठिन उपवासों में से एक माना जाता है क्योंकि इसमें 36 घंटे तक बिना जल और भोजन के रहना पड़ता है। व्रती कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि छठी मैया की कृपा से संतान की सुरक्षा होती है और सूर्य देव से स्वास्थ्य समृद्धि और ऊर्जा प्राप्त होती है। यह पर्व संतान की लंबी उम्र और परिवार में सुख-शांति के लिए किया जाता है।

ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता

ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने चैत्र मास में सूर्य पूजा की थी जिससे यह पर्व सूर्यवंशी परंपरा से जुड़ा हुआ है। छठ पर्व की जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं जहां सूर्य को ऊर्जा और जीवन का आधार माना गया है। इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है क्योंकि सुबह और शाम सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

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Neha Yadav Chief Editor