कड़वा सच : बिहार में नौजवानों का भविष्य दम तोड़ रहा है !

Future of bihar

Dec 6, 2025 - 10:04
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कड़वा सच : बिहार में नौजवानों का भविष्य दम तोड़ रहा है !

बिहार की व्यथा अलग तरह की है। चुनाव हो चुके हैं। नतीजें आ चुके हैं। सरकार बन गई है। बिहार यथास्थितिवाद का शिकार हो चुका है। रोजगार के मामले में बिहार के गांवों और छोटे शहरों की स्थिति तो खराब है ही, राजधानी पटना भी अजीब तरह के सन्नाटे से गुजर रहा है। 

बिहार के चुनावों में पलायन, बेरोजगारी, औद्योगिकरण कोई मुद्दा ही नहीं बन पाया। कम से कम चुनावी नतीजे तो यही बताते हैं।

राजधानी पटना में जो भीड़ दिखाई देती है, वो किसी ऑफिस में काम करने वाले कर्मचारियों की नहीं होती बल्कि बेहतर इलाज कराने के लिए पटना पहुंचे मरीज और उनके परिजन, राजनीतिक कार्यकर्ता और यहां रहकर सरकारी नौकरियों की तैयारी करने वाले छोत्र नौजवान होते हैं। 

यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि बिहार में बेरोजगारी चरम सीमा पर है। यहां के युवाओं के पास काम नहीं है। बिहारी युवाओं की मेहनत और प्रतिभा में कोई कमी नहीं है लेकिन बिहार के अंदर आगे बढ़ने का कोई अवसर नहीं है। 

बिहार की सच्चाई राजधानी पटना के कुछ इलाकों की चमक दमक से बहुत अलग है। बिहार में नौजवानों का पलायन सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर चुका है। राजधानी पटना की बात कर लें तो यहां पर 75 प्रतिशत स्टार्टअप फेल हैं। यहां रहकर कोई काम करना चाहे तो डिलीवरी बॉय बनने और ऑटो टोटो चलाने के अलावा काम करने के कोई विशेष अवसर नहीं है। बहुत हुआ तो किसी अपार्टमेंट में गार्ड की नौकरी प्राप्त कर लो। गार्ड को भी छह सात हजार रुपये से ज्यादा महीने के नहीं मिलते। 

जैसे तैसे जो लोग बिहार में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं, वो अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। कल कारखाने, उद्योग धंधे, आईटी सेक्टर के नाम पर सब कुछ शून्य है। कई युवाओं की व्यथा अलग है। जैसे तैसे पैसे जुगाड़ कर कोई धंधा शुरु भी किया तो बहुत लाभ में नहीं है। कुल मिलाकर भविष्य अंधकारमय है। 

देश के युवाओं के भविष्य को बनाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर होती है क्योंकि वही देश का नेतृत्व कर रहे हैं। वो बिहार आते हैं और अरवा और उसना चावल की कहानी सुनाकर चले जाते हैं। 5 किलो अनाज और 10 हजार ही बिहार का यथार्थ बन चुका है। 

सोशल मीडिया पर नए नए बने मंत्रियों की जो बातें आप सुन कर प्रसन्न हो रहे हैं न, वो बातें पिछले 20 सालों से मीडिया में ही आती हैं और मीडिया में ही रह जाती हैं। बिहार में निकट भविष्य में भी औद्योगिकरण का कोई चांस नहीं है और आईटी सेक्टर आने के बारे में तो सोचना भी मूर्खता है। 

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