Jharkhand News: झारखंड की राजनीति में सर्ना धर्म कोड का संग्राम! झारखंड में विरोध प्रदर्शन की तैयारी

Jharkhand News: झारखंड में सर्ना धर्म कोड की मांग बहुत पुरानी है और अब यह राज्य की राजनीति का केंद्र बन चुकी है। यह मुद्दा सिर्फ आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान से नहीं जुड़ा है बल्कि एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन चुका है। झारखंड की लगभग 27 प्रतिशत आबादी आदिवासी है जो खुद को सर्ना धर्म के तहत मानती है।

May 25, 2025 - 11:13
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Jharkhand News: झारखंड की राजनीति में सर्ना धर्म कोड का संग्राम! झारखंड में विरोध प्रदर्शन की तैयारी

Jharkhand News: झारखंड में सर्ना धर्म कोड की मांग बहुत पुरानी है और अब यह राज्य की राजनीति का केंद्र बन चुकी है। यह मुद्दा सिर्फ आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान से नहीं जुड़ा है बल्कि एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन चुका है। झारखंड की लगभग 27 प्रतिशत आबादी आदिवासी है जो खुद को सर्ना धर्म के तहत मानती है। यह धर्म प्रकृति पूजा पर आधारित है जिसमें संथाली मुंडा हो और कुरुख समुदाय के लोग पेड़ पहाड़ नदियां और जंगलों की पूजा करते हैं। साल 2020 में झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर सर्ना धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने की मांग केंद्र सरकार को भेजी थी लेकिन केंद्र की तरफ से अब तक कोई ठोस फैसला नहीं हुआ जिससे यह मुद्दा और गरमा गया है।

राजनीतिक दलों की रणनीति और सर्ना कोड

झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी जेएमएम ने सर्ना धर्म कोड की मांग को अपने राजनीतिक एजेंडे का केंद्र बना लिया है। जेएमएम ने केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि जब तक सर्ना आदिवासी धर्म कोड लागू नहीं होगा तब तक राज्य में जनगणना नहीं होने दी जाएगी। पार्टी ने 27 मई को राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है जिसमें सभी जिला मुख्यालयों पर धरना दिया जाएगा। यह रणनीति आदिवासी समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत करने और खुद को आदिवासी हितों के रक्षक के रूप में स्थापित करने की कोशिश है। जेएमएम के महासचिव विनोद पांडेय ने इस मुद्दे पर भाजपा को घेरा और उसे आदिवासी विरोधी करार दिया है। कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सक्रिय है और इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल कर चुकी है। राहुल गांधी ने हाल ही में दिल्ली में पार्टी प्रवक्ताओं और वरिष्ठ नेताओं की बैठक में झारखंड में सर्ना धर्म कोड पर ध्यान बढ़ाने का निर्देश दिया है।

दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा पर इस मुद्दे को लेकर दोहरे रवैये का आरोप लग रहा है। भाजपा ने जेएमएम और कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा है कि 2014 में यूपीए सरकार के दौरान सर्ना धर्म कोड की मांग को अव्यावहारिक बताकर खारिज किया गया था। हालांकि 2024 के विधानसभा चुनावों में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह सर्ना धर्म कोड लागू करेगी। इसे आदिवासी वोटों को लुभाने की रणनीति माना गया था लेकिन भाजपा का इस मुद्दे पर अस्पष्ट रुख विवाद को जन्म दे रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कांग्रेस को याद दिलाया है कि जो कांग्रेस आज सर्ना धर्म कोड के नाम पर राजनीति कर रही है वही कांग्रेस सरकार 1961 में ब्रिटिश काल से चला आ रहा आदिवासी धर्म कोड हटा चुकी है।

वोट बैंक की राजनीति में गरमाया मुद्दा

झारखंड के आदिवासी समुदाय का बड़ा वोट बैंक है और सर्ना धर्म कोड का मुद्दा सभी प्रमुख पार्टियों के लिए इसे अपने पक्ष में करने का अवसर बन गया है। जेएमएम और कांग्रेस की आक्रामक रणनीति आदिवासी मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकती है। केंद्र सरकार की तरफ से प्रस्ताव पर निर्णय में देरी झारखंड में असंतोष बढ़ा सकती है जिससे जेएमएम और कांग्रेस को केंद्र की नीतियों पर हमला करने का मौका मिलेगा। भाजपा के लिए यह मुद्दा चुनौती बन गया है क्योंकि सर्ना को अलग धर्म की मान्यता देना उसकी हिंदुत्व विचारधारा से टकरा सकता है जिससे भाजपा को आदिवासी और हिंदू मतदाताओं के बीच संतुलन बनाने में दिक्कत हो सकती है।

सर्ना धर्म कोड का मुद्दा झारखंड की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। यह मुद्दा आदिवासी समुदाय की पहचान और अधिकारों की लड़ाई का हिस्सा बन चुका है साथ ही राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक की रणनीति का अहम हिस्सा भी बन गया है। जेएमएम और कांग्रेस इस मुद्दे को आदिवासी पहचान से जोड़कर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि भाजपा इस पर सतर्क रुख अपना रही है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक बयानबाजी के कारण झारखंड की राजनीति और गरमा सकती है। सभी की नजर केंद्र सरकार के रुख और सर्ना कोड को जनगणना में शामिल करने के फैसले पर टिकी हुई है।

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