Jharkhand News: टनल में दब गया मजदूर, शव लापता—परिजनों ने पुतले से किया अंतिम विदाई का इंतज़ाम
Jharkhand News: तेलंगाना के नगरकुरनूल में 22 फरवरी को एक दर्दनाक टनल हादसा हुआ जिसमें कई मजदूरों की जान चली गई। इन्हीं में से एक थे झारखंड के गुमला जिले के टीरा गांव के रहने वाले मजदूर संतोष साहू। यह हादसा इतना भयानक था कि आज तक उनके शव का कोई पता नहीं चल पाया है। हादसे के लगभग 80 दिन बाद भी उनके परिजनों को सिर्फ इंतजार और मायूसी ही मिली है।
Jharkhand News: तेलंगाना के नगरकुरनूल में 22 फरवरी को एक दर्दनाक टनल हादसा हुआ जिसमें कई मजदूरों की जान चली गई। इन्हीं में से एक थे झारखंड के गुमला जिले के टीरा गांव के रहने वाले मजदूर संतोष साहू। यह हादसा इतना भयानक था कि आज तक उनके शव का कोई पता नहीं चल पाया है। हादसे के लगभग 80 दिन बाद भी उनके परिजनों को सिर्फ इंतजार और मायूसी ही मिली है।
बिना शव के किया गया अंतिम संस्कार
संतोष साहू की मौत के इतने दिन बाद भी जब उनका शव नहीं मिल पाया तो उनके परिवार वालों ने भारी मन से उन्हें मृत मान लिया। इसके बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए एक विशेष अंतिम संस्कार किया गया। चूंकि शव नहीं मिला था इसलिए उनके अंतिम संस्कार के लिए एक मानव रूप की मानेक्विन यानी पुतला बनाया गया। इस पुतले पर संतोष साहू की तस्वीर लगाई गई और उसे चार कंधों के सहारे ले जाया गया।
संतोष साहू के इस प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार में गांव के सैकड़ों लोग शामिल हुए। अंतिम यात्रा में हिंदू रीति रिवाजों का पूरी तरह पालन किया गया। गुमला जयपुर रोड पर स्थित टीरा घाट में उस पुतले का दाह संस्कार किया गया। संतोष की मौत ने पूरे गांव को झकझोर दिया है। गांव वालों ने भीगी आंखों से संतोष को विदाई दी मगर हर किसी के दिल में यही सवाल है कि क्या सरकार कभी इन लापता मजदूरों का हिसाब दे पाएगी।
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
संतोष साहू अपने पीछे पत्नी के साथ-साथ तीन छोटे बच्चों को छोड़ गए हैं जिनमें दो बेटियां और एक सात साल का बेटा शामिल है। इन बच्चों की आंखें आज भी दरवाजे की ओर टिकी हैं जैसे कि पिता अब भी लौट आएंगे। परिवार में आज भी एक सन्नाटा पसरा हुआ है। पत्नी का दर्द शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। पूरे गांव में यह चर्चा है कि सरकार को इन मजदूरों के लिए न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।
गुमला जिले के कुल चार मजदूर इस टनल हादसे में फंसे थे और अब तक किसी की भी लाश नहीं मिली है। यह हादसा न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरे देश के प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है। आखिर कब तक मजदूर जान जोखिम में डालकर दूर दराज के राज्यों में काम करते रहेंगे और हादसों के बाद बस खबर बनकर रह जाएंगे। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन परिवारों को न सिर्फ आर्थिक सहायता दे बल्कि खोजबीन भी तेज करे।
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